उत्तराखंड

धान की बुआई से पूर्व करे मिट्टी व बीज का उपचार

देहरादून: धान की पौध बुवाई से पूर्व बीज का सही उपचार व समय से धान की बुआई से किसान अच्छा उत्पादन कर सकते है। इसको लेकर कृषि विशेषज्ञों ने किसानों से जरूरी जानकारियां भी साझा की है।

ढकरानी विज्ञान केंद्र के कृषि विशेषज्ञ संजय कुमार राठी ने किसानों से धान की पौध की बुवाई व उस समय ध्यान रखने वाली जरूरी बातों को किसानों के साथ साझा किया है। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि अच्छे बीज का चयन करने के साथ ही लंबी अवधि वाली किस्म की बुआई अगेती कर लेनी चाहिए। जबकि मध्यम अवधि में परिपक्व होने वाली किस्म के लिए जून के प्रथम सप्ताह जबकि कम अवधि में तैयार होने वाली किस्म की बुवाई जून माह के द्वितीय सप्ताह में कर लेनी चाहिए। वही नर्सरी डालने से पूर्व कुछ विशेष बातों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। जिसमें प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई के लिए लगभग 500 से 800 वर्ग मीटर स्थान की आवश्यकता रहती है। इतने क्षेत्रफल की पहली फसल से खाली होने पर खेत की सफाई करें जिसमें पहली फसल के जड़, तना अवशेष आदि को खेत से निकालकर अलग कर लें। साथ ही खेत की गहरी जुताई कर खेत में पानी लगाए इसके बाद जुतायी कर इस खेत को भुरभुरा व समतल बनाएं। इसमें 20 से 25 कुंटल गोबर की सड़ी खाद बिखेर कर खेत को पतली पतली सवा मीटर चौड़ी क्यारी में बांट दे। व क्यारी को साफ सुथरी बनाएं ।इस क्षेत्रफल में तीन किलोग्राम यूरिया ,पांच किलोग्राम शुभ सिंगल सुपर फास्फेट, दो किलोग्राम न्यू रेट पोटाश एवं एक किलोग्राम जिंक खेत में मिलाकर पानी भर दे। फिर ट्रैक्टर अथवा बैल चलित कल्टीवेटर, रोटावेटर आदि से कीचड़ तैयार करें। चयन की गई प्रजाति के स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करे। बुआई करने से पहले बीज का उपचार जैव उर्वरक अथवा जैव फफूंदीनाशक अथवा जैव कीटनाशक से अलग-अलग एवं एक साथ करने पर ही बुवाई करें। इसके लिए प्रति दस किलोग्राम बीज में बीस ग्राम कार्बेनडिज्म, एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन जीवाणु नाशक दवा का प्रयोग करे। यदि धान की फसल जैविक पद्धति से तैयार की जा रही है तो उसमें एनपी कंसोर्टियां , ट्राईकोडर्मा एवं सइउदोमोनास आदि रसायनों का प्रति किलोग्राम बीज में प्रति जैविक रसायन का पांच ग्राम मात्रा से बीज को उपचारित करें। इससे बीज में रोगों की प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है। और अंकुरण भी तेजी से होता है। बुवाई से पूर्व बीज को दस प्रतिशत नमक के घोल में उपचारित करना चाहिए । इसके लिए दस लीटर पानी में एक किलोग्राम साधारण नमक घोलकर बीज को धीरे-धीरे डालने पर हल्के एवं रोग एवं कीट ग्रस्त बीज ऊपर की ओर सतह पर तैरने लगते है। उसको निरंतर हटाते रहे। फिर सादे पानी से बीज को दो-तीन बार धोने के पश्चात 24 घंटे के लिए बीज को पानी में डूबा कर रखें। तत्पश्चात बीज को पानी से निकालकर ठंडे स्थान पर नमीयुक्त बोरी से ढककर एक-दो दिन के लिए रख दे। दो दिन बाद में तैयार खेत में शाम के समय बीजों को छिड़क दे। ध्यान रखें की पानी क्यारी में ना खड़ा हो दो-तीन दिन तक हल्का पानी बनाकर रखें। यदि किसान इन जरूरी बातों को ध्यान में रखेंगे तो वह अधिक उत्पादन कर पाएंगे। साथ ही उन्होंने बताया कि एक किलोग्राम बीज की मात्रा को 20 से 25 वर्ग मीटर स्थान में बुवाई करने पर स्वस्थ पौध तैयार करने में सहायता मिलती है। परन्तु किसानों की ओर से बीज से 25 वर्ग मीटर में लगभग दो-तीन किलोग्राम बीज डाला जाता है। जिसके कारण पौध बारीक एवं कमजोर रहती है और रौपायी के लिए देरी से तैयार होती है। इसके कारण उपज भी घटना स्वाभाविक है।

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