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कुशल प्रबंधन से करे गेंहू की बुआई तो होगा बंपर उत्पादन

उत्तराखंड/ देहरादून: किसान यदि उचित प्रबंधन व खाद ,बीज का सही इस्तेमाल कर गेहूं की बुवाई करें तो उन्हें बेहतर उत्पादन प्राप्त हो सकता है। इसके लिए उन्हें जहां गेहूं बुवाई से पूर्व भूमि की तैयारी उसमें खाद व बीज की गुणवत्ता को ध्यान में रखने की भी जरूरत है। जिससे की फसल को रोग मुक्त रख अच्छा उत्पादन पाया जा सकता है। जिसमे समय अनुसार बीज का चयन भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई अधिकतर धान की फसल से खाली हुए खेतों में की जाती है। गेहूं से भरपूर उत्पादन मिल सके इसलिए धान की कटाई के पश्चात खेत की तैयारी के समय कई बातों को ध्यान में रखना चाहिए। ढकरानी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा. संजय कुमार राठी ने बताया कि धान की कटाई के पश्चात खेत में बचे हुए ठूंठ व तने को सढ़ाने के लिए प्रति बीघा पांच किलोग्राम यूरिया बिखेरकर जुताई करने व जुताई करने के बाद पलावा अवश्य करे। इससे ठूठ व फसल के अवशेष तेजी से सड़ने लगते है और खाद में बदल जाते है। जुताई के बाद पलावा करें जिससे गेहूं के जमाव के लिए खेत में नमी की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध रहेगी। वही रबी मौसम के खरपतवारों का अंकुरण भी हो जाता है जो खेत की तैयारी करते समय जुताई से नष्ट हो जाते है। और खरपतवारों की समस्या गेहूं में कम रहती है। ऐसा ना करने की स्थिति में गेहूं में प्रयोग किये गए नाइट्रोजन का उपयोग फसल वृद्धि के समय यह ठूठ सड़ने के लिए करते है। जिससे गेहूं की फसल को जमाव के समय नाइट्रोजन की भरपूर मात्रा उपलब्ध नहीं होती। जिससे पौधे पीले पड़ने लगते है। यदि कंपोस्ट खाद डालनी है तो खेत में बिना जुताई के कंपोस्ट डालकर जुताई करने के पश्चात पलेवा करे।


उन्होंने बताया की बुवाई करते समय स्वस्थ बीज का चुनाव करे। छिड़काव विधि द्वारा बुवाई करने पर प्रति बीघा दस किलोग्राम व सीडड्रिल से बुवाई करने में आठ किलोग्राम बीज उचित रहता है। मध्यम देरी में बुआई करने की स्थिति में बीस नवंबर के बाद दो किलोग्राम बीज प्रति बीघा बढ़ाकर बुआई करनी चाहिए। बुआई करने से पहले बीज में जैविक एनपीके पांच मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर बुवाई करे। इससे गेहूं के जमाव में वृद्धि होगी और बुवाई के पश्चात पक्षियों द्वारा बीज का चुगान भी घटेगा। उन्होंने बताया कि अधिकतर खेतों में किसान पोटाश पोषक तत्वों की मात्रा कम प्रयोग करते है अतः अच्छे गेहूं उत्पादन के लिए आवश्यक है कि गेहूं की फसल हेतु पोटाश की आवश्यक मात्रा बुआई के समय पर खेत में करी जाए। इसके लिए डीएपी उर्वरक के स्थान पर प्रतिबीघा 10 से 12 किलोग्राम एनपीके उर्वरक प्रयोग करना चाहिए। इसी के साथ-साथ यूरिया एवं जिंक सल्फेट की दो-दो किलोग्राम मात्रा अंतिम जुताई करते समय दी जा सकती है। बुवाई के बाद तुरंत भारी पाटा लगाना चाहिए। जिससे भूमि में नमी सुरक्षित हो और बीज का संपर्क मिट्टी से अच्छी तरह बन पाए। सीडड्रिल से बुवाई करते समय ध्यान रखें की बीज अधिक गहराई पर न जाए। इससे जमाव में समस्या आ सकती है। उन्होंने किसानों से अपील करी की गेहूं से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत की तैयारी खाद एवं उर्वरकों का उचित प्रबंध, स्वस्थ्य बीज, अच्छी किस्म बुवाई की विधि एवं समय अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कारक है। इनका नियोजित ढंग से उपयोग करने पर खेती की लागत में कमी कर अधिक लाभ अर्जित करने की संभावना प्रबल होती है।

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किसानों के लिए यह बीज अधिक उपयोगी

डोईवाला : कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं की अगेती बुवाई 25 अक्टूबर से दस नवंबर तक कर देनी चाहिए। इस अवधि में गेहूं की उन्नत किस्म जैसे एचडी 3226, एचडी 2967, डी बी डब्ल्यू 303, 222, 327, 370, 371, 372, यू पी 2855, 2903, 2938 एवं एचडी 3237 की बुवाई की जा सकती है
वही सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई करने हेतु नवंबर का दूसरा पखवाड़ा उत्तम समय है। यहां पर गेहूं की एचडी 3086 एचडी 3043 एचडी 3369, 3086, डब्लूएच 1105, यूपी 2554, 2528, 2784 की बुवाई की जा सकती है।

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