उत्तराखंडसामाजिक

किसानों के मुद्दे को लेकर गंभीर नहीं सरकार- टिकैत

हरिद्वार(उत्तराखंड)-उत्तराखंड के जनपद हरिद्वार में आयोजित भारतीय किसान यूनियन के तीन दिवसीय राष्ट्रीय चिंतन शिविर (किसान कुंभ) के आज प्रथम दिवस वीआईपी घाट और लाल कोठी पर समीक्षा बैठक की गई।

 

इस राष्ट्रीय चिंतन शिविर में कई प्रदेशों के किसानों ने हिस्सा लिया और अपनी समस्याओं को लेकर विस्तार पूर्वक चर्चा की भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत जी ने समीक्षा बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि किसान मुद्दों को लेकर सरकार गंभीर नहीं है बेरोजगारी स्वास्थ्य महंगाई जैसी समस्याएं आने वाले समय में विकराल रूप धारण करेंगे किसान कर्ज में दब चुका है ऐसी स्थिति में उसे आत्महत्या करनी पड़ रही है।

सरकार के 11 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं इसे लेकर हमारे सरकार से यह 11 सवाल है आज की समीक्षा बैठक में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव चौधरी युद्धवीर सिंह राजवीर सिंह जादौन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष राजपाल शर्मा जी दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष दलजीत सिंह डागर हरियाणा से राजारामजी ढुल सहित जिले के जिला अध्यक्ष मंडल अध्यक्षों ने हिस्सा लिया।

इसके पश्चात सभी ने सरकार के 11 साल/ हमारे 11 सवाल का पत्र जारी किया-

सरकार के 11 साल/ हमारे 11 सवाल

देश की केन्द्र सरकार को सत्ता चलाते हुए 11 वर्ष पूर्ण हो गये हैं, लेकिन देश का किसान, मजदूर, आदिवासी, दलित, शोषित, पिछडा वर्ग आज भी अपने वजूद को तलाश रहा है। हक व अधिकारों से वंचित यह सभी वर्ग केन्द्र सरकार के 11 वर्ष पूर्ण होने पर अपने 11 सवाल पूछ रहे हैं-

1. एमएसपी गारंटी कानून और सी2 50 स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट- देश का किसान विगत कई वर्षों से एमएसपी को गारंटी कानून बनाने की मांग कर रहा है। सरकार के द्वारा एमएसपी को गारंटी कानून का दर्जा आज तक क्यों नहीं दिया गया और साथ ही सी2 50 स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को आज तक लागू क्यों नहीं किया गया?

2. सम्पूर्ण कर्जमाफी- फसलों के वाजिब भाव न होना देश के किसान, मजदूर को कर्ज लेने पर मजबूर कर रहे हैं। सरकार की असफल नीतियों का खामियाजा देश के कई महत्वपूर्ण वर्ग झेल रहे हैं। चुनिंदा उद्योगपतियों का कर्ज बिना किसी सार्वजनिक सूचना के माफ कर दिया जाता है, लेकिन देश के किसान का सम्पूर्ण कर्ज क्यों माफ नहीं किया जा रहा है?

3. भूमि अधिग्रहण- राष्ट्रीयकृत हाईवे और संस्थाओं के नाम पर देशभर में अधिग्रहण का कार्य जोरो-शोरों से चला हुआ है। कारपोरेट घराने अपनी मनमर्जी से जमीनों का अधिग्रहण कर रहे हैं। सरकार के द्वारा 2013 में बनाए गए भूमि अधिग्रहण एक्ट को भी अप्रभावी साबित कर दिया गया है। 2013 में बनाए गए इस एक्ट को आज तक पूर्णरूप से लागू क्यों नहीं किया गया है?

4. जीएसटी मुक्त खेती- देश का किसान कोरोना जैसी महामारी के समय पर भी अन्न उत्पादन कर देश का पेट भर रहा था, लेकिन दुर्भाग्य है कि खेती में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं पर देश के अन्नदाता को जीएसटी देना पड़ता है। यह टैक्स उसकी आर्थिक स्थिति को कमजोर करने का काम कर रहा है। पूर्व समय से ही किसान जीएसटी मुक्त खेती की मांग कर रहा है, लेकिन आज तक खेती में उपयोग होने वाले यंत्र व वस्तुओं को जीएसटी मुक्त क्यों नहीं किया गया?

5. आदिवासी अधिकार- देश में जल-जंगल-जमीन के लिए सबसे ज्यादा जागरूकता और संघर्ष आदिवासी समुदाय कर रहा है, लेकिन दुःखद है कि उनकी ग्राम सभाओं की सहमति के बिना खनन, बाँध, उद्योग परियोजनाओं सहित जंगलों की कटाई की मंजूरी दे दी जाती है। 2006 में बना वन अधिकार अधिनियम हो या पीईएसए 1996 पूरी तरह से लागू नहीं किया गया। क्या यह वन अधिकार कानून और संविधान की अवहेलना नहीं है?

6. एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) कानून- देश में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को लेकर अनेकों कार्यक्रम व कार्यवाही चलती रहती हैं, लेकिन इसके दायरे में खेती में उपयोग होने वाले यंत्रों को शामिल किया गया है, जिससे किसान प्रभावित हो रहा है। पूर्व समय से देश का किसान कृषि में उपयोग होने वाले यंत्र जैसे ट्रैक्टर, पम्पिंग सैट, जनरेटर इत्यादि को एनजीटी से मुक्त करने की मांग कर रहा है, लेकिन आज तक इन्हें एनजीटी से मुक्त क्यों नहीं किया गया?

7. जेनिटिकली मोडिफाईड सीडस- सरकार परम्परागत बीजों की प्रजातियों को छोड़कर उत्पादन बढ़ाने के नाम पर जेनिटिकली मोडिफाईड सीडस को देश में ट्रायल की मंजूरी दे रही है। यह पर्यावरण व मानव जीवन पर सीधा प्रभाव डालेंगे। इसे लेकर देशभर में जीएम मुक्त भारत की मांग हो रही है, लेकिन आज तक देश में जेनिटिकली मोडिफाईड सीडस को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया गया है?

8. निजीकरण- देश की केन्द्र सरकार वित्तीय घाटा और अन्य कारण बताकर बहुत-सी संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपने का काम कर रही हैं। विद्युत निजीकरण का कार्य प्रगति पर है। देशभर में जहाँ पर भी निजीकरण हुआ है इसका सीधा प्रभाव देश के नागरिकों पर पहुँचा है। निजी संस्थाओं पर जनता की जवाबदेही और पारदर्शिता कम होती चली जाती है। ऐसे गम्भीर विषयों को ध्यान में रखते हुए सरकार के द्वारा निजीकरण जैसे कार्यों को क्यों नहीं रोका जा रहा है?

9. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)- देश का किसान प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता है, जिसका सीधा प्रभाव देश के खाद्यान्न और आर्थिक स्थिति पर पड़ता है। उसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) का भी लाभ नहीं मिल पाता है। कागजों में यह योजना पूर्ण रूप से कार्य कर रही है, लेकिन धरातल पर यह अप्रभावी है। बहुत-सी बीमा कम्पनियों के कार्यालय ही जनपदों में मौजूद नहीं है। ऐसे सभी विषयों को देखते हुए भी सरकार के द्वारा उसके क्रियान्वयन और निगरानी तंत्र को सुधारा क्यों नहीं जा रहा है?

10. हर खेत जल- सरकार के द्वारा अनेकों योजनाओं को सिंचाई के नाम पर चलाया जा रहा है, जिसकी भारी भरकम घोषणा हर बजट में की जाती है, लेकिन देश के किसान का दुर्भाग्य है कि वह खेत तक जाते-जाते गायब हो जाती है। जल संकट से जूझ रहे किसानों के लिए सरकार ने आज तक कोई भी ठोस नीति का निर्माण क्यों नहीं किया?

11. बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई- देश की सरकार के द्वारा बेरोजगारी को लेकर कोई भी ठोस निर्णय नहीं लिया जा रहा है। ऐसे में देश का युवा आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है। शिक्षा जैसे क्षेत्र में निजीकरण पूरी तरीके से हावी हो चला है। सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त विद्यालयों की स्थिति बहुत-से राज्यों में जर्जर हो चली है। जिसका सीधा प्रभाव ग्रामीण भारत पर पहँुच रहा है। स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधा से आज भी यह ग्रामीण वर्ग कोसों दूर खड़ा है। प्रत्येक वर्ष असुविधा के कारण देश के बहुत-से नागरिक अपनी जान गँवा रहे हैं। बढ़ती हुई महंगाई में या तो वह अपने परिवार का पालन पोषण करें या फिर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी निजीकरण बीमारी का सामना करे। इन सभी गम्भीर विषयों को देखते हुए भी सरकार के द्वारा इन्हें नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है?

‘‘सबका साथ सबका विकास’’ का नारा सिर्फ विज्ञापनों में दिखाई पड़ रहा है धरातलीय स्थिति इसके विपरित है। ‘‘खुद का ही साथ खुद का ही विकास’’ यह आज के भारत की स्थिति है।

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