– भ्रामक खबर प्रकाशित करने वालो के विरुद्ध करेंगे कार्यवाही
देहरादून: वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी डी०पी०सिंह के द्वारा कतिपय समाचार पत्रों एवं विभिन्न न्यूज पोर्टलों/चैनलों के सम्पादकों को लीगल नोटिस देने के साथ-साथ करोड़ो रूपये का मा० न्यायालय में डिफेमेशन केस योजित करने की तैयारी है।
विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि डी०पी०सिंह, पी०सी०एस० के द्वारा कतिपय समाचार पत्रों एवं विभिन्न न्यूज पोर्टलों/चैनलों के सम्पादकों एवं कतिपय सामाजिक ठेकेदारों को लीगल नोटिस देने के साथ-साथ मा० न्यायालय में डिफेमेशन केस योजित करने की तैयारी की जा रही है। क्योकिं कतिपय समाचार पत्रों एवं विभिन्न न्यूज पोर्टलों के सम्पादकों के द्वारा वर्ष 2017 में राष्ट्रीय राजमार्ग-74 के विस्तारीकरण में अधिग्रहित भूमि के प्रतिकर निर्धारण एवं वितरण में अनियमितता के सम्बन्ध में बिना किसी साक्ष्य एवं अधिकृत स्त्रोत के विभिन्न खबरों को मनगढंत आधारों पर प्रकाशित किया जा रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि अधिग्रहित भूमि के प्रतिकर निर्धारण सम्बन्धी राष्ट्रीय राजमार्ग 1956 एवं भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुर्नव्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 में उल्लिखित प्रावधानों से कोई भी भिज्ञ नही है। इतना ही नहीं अपितु सक्षम प्राधिकारी भूमि अधिग्रहण के द्वारा सिविल जज के रूप में कृत कार्यों, अधिकारों एवं पदीय दायित्वों के सम्बन्ध में किसी को भी जानकारी नही है। इसलिए राष्ट्रीय राजमार्ग 74 के भूमि अधिग्रहण में प्रतिकर निर्धारण सम्बन्धी अनियमितताओं के सम्बन्ध में श्री दिनेश प्रताप सिंह के विरूद्ध प्रकाशित तर्कहीन एवं विधि विरूद्ध समाचारों से न सिर्फ उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हुई है अपितु न्याय पाने में भी विलम्ब हुआ है। जबकि अनुशासनिक जांच में स्पष्ट हुआ है कि श्री सिंह के द्वारा रू0 500.00 करोड़ से अधिक की प्रतिकर धनराशि की बचत की गई है। और श्री सिंह के द्वारा पारित अधिकांश अर्द्धन्यायिक आदेशों की प्रतिकर धनराशि को अपीलीय न्यायालयों द्वारा अपहेल्ड किया गया है या बढ़ाया गया है। इसलिए बिना साक्ष्यों के न्यायिक प्रक्रिया एवं जांच आख्या को समाचारों के माध्यम से प्रभावित करने वालों के विरूद्ध लीगल नोटिस एवं डिफेमेशन केस करने का निर्णय लिया गया। यहां इस बात का भी उल्लेख करना तथ्यपरक होगा कि श्री सिंह के द्वारा मा० उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड में इस आशय का भी शपथपत्र प्रस्तुत किया गया था कि प्रश्नगत प्रकरण की जांच सी०बी०आई० के द्वारा कराई जाए, क्योकि वह स्वयं निर्दोष थे।
आयकर विभाग द्वारा क्लीन चिट श्री सिंह के यहां वर्ष 2017 में आयकर विभाग द्वारा की गई रेड की जांच में आई०टी० एक्ट की धारा 142 (2ए) के अन्तर्गत स्पेशल ऑडिट करते हुए आदेश पारित किये गये, जिसमें श्री सिंह के विरूद्ध किसी भी प्रकार का कैश ट्रॉजैक्शन/मनी ट्रेल/आय से अधिक सम्पत्ति न पाते हुए क्लीन चिट दी गई।
ई०डी० की कार्यवाही में मा० विशेष न्यायालय का ऑबजरवेशन- प्रश्नगत प्रकरण में प्रर्वतन निदेशालय द्वारा मा० सक्षम न्यायालय में सात प्रोजेक्यूशन कम्पलेन दाखिल की गई जिसके विरूद्ध श्री सिंह के द्वारा मा० उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड में रिट याचिका योजित की गई है, जिसमें श्री सिंह के द्वारा कृत कार्यों को विधिक मानते हुए प्रकरण में अन्य आरोपियों के द्वारा कृत कार्यों एवं विधि में प्रदत्त व्यवस्था के अनुसार रिट याचिका को निरस्त कर दिया गया। जिसके उपरान्त श्री सिंह के द्वारा मा० न्यायालय, विशेष न्यायाधीश, पी०एम०एल०ए० में अपना पक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसमें मा० न्यायालय द्वारा पी०एम०एल०ए० की धारा 45 के अन्तर्गत साक्ष्यों के आधार पर यह पाया गया कि “There are reasons for believing that accused is not guilty of such offence”.
अनुशासनिक कार्यवाही में शासन द्वारा क्लीन चिट एवं अभियोजन चलाने की स्वीकृति निरस्त- श्री सिंह के विरूद्ध प्रचलित अनुशासनिक कार्यवाही में आयुक्त, गढ़वाल मण्डल एवं एस०आई०टी० की जांच रिपोर्ट के आधार पर उत्तराखण्ड शासन द्वारा प्रेषित आरोप पत्रों के सम्बन्ध में श्री सिंह द्वारा अपना प्रतिउत्तर साक्ष्यों सहित प्रस्तुत किया गया। तदोपरान्त जांच अधिकारी के द्वारा अपनी जांच आख्या प्रस्तुत की गई, जिसका परीक्षण अनुशासनिक अधिकारी द्वारा भूमि अधिग्रहण संबंधी राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956, भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुर्नवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013, प्रकरण विषयक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग के सर्कुलरों, मा० उच्च न्यायालयों तथा मा० सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली द्वारा भूमि अधिग्रहण हेतु बाजार दर का निर्धारण क सम्बन्ध में प्रतिपादित सिद्धान्तों के आलोक में किया गया। जांच अधिकारी की जांच आख्या में उल्लिखित तथ्यों/निष्कर्षों के आलोक में संगत अभिलेखों के समुचित परीक्षण/अनुशीलन करते हुए आरोप सिद्ध न होने की दशा में सम्यविचारोपरान्त श्री दिनेश प्रताप सिंह के विरूद्ध प्रचलित अनुशासनिक कार्यवाही को बिना किसी शास्ति के समाप्त करने के साथ-साथ सक्षम अधिकारितायुक्त न्यायालय में अभियोजन चलाने की स्वीकृति को निरस्त कर दिया गया।