उत्तराखंड ब्यूरो:
देहरादून/डोईवाला: देश की आजादी में कई वीर सपूतों ने अपना बलिदान दिया है। उन्हीं में से एक डोईवाला निवासी अमर बलिदानी मेजर दुर्गामल्ल भी शामिल है। जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक कर देश के लिए अपना बलिदान दिया। वह आजाद हिंद फौज में शामिल पहले गोरखा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनके इस बलिदान से देश की युवा पीढ़ी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।
अमर शहीद मेजर दुर्गा मल्ल का जन्म डोईवाला (खता गांव) में एक जुलाई 1913 को गंगाराम मल्ल के यहां एक गोरखा परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही उनके अंदर देशभक्ति का जुनून सवार था। जिस समय देश में आजादी की क्रांति की ज्वाला भड़क रही थी। अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ जगह-जगह जन आंदोलन हो रहे थे। इस बीच सन 1931 में मात्र 18 वर्ष की आयु में ही उन्होंने गोरखा राइफल में भर्ती होकर दस वर्ष तक अपनी सेवाएं दी। इस बीच वर्ष 1942 में वह सिगापुर में भारतीय फौज के गोरखा राइफल में हवलदार थे। इसके बाद वह देश को आजादी दिलाने के उद्देश्य से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गठित आजाद हिद फौज में भर्ती हो गए। जिससे प्रभावित होकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें मेजर की पदवी से भी नवाजा। आजाद हिद फौज में उन्हें गुप्तचर शाखा का प्रमुख कार्य सौंपा गया था।
इस बीच महत्वपूर्ण सूचनाये एकत्रित करते समय मेजर दुर्गामल्ल को अंग्रेजी सेना ने मणिपुर के कोहिमा के पास पकड़कर 27 मार्च 1944 को उन्हें बंदी बना लिया। युद्ध बंदी रहते हुए उन्हें कठिन यातनाएं दी गई और माफी मांगने को कहा गया। परंतु आजादी के दीवाने दुर्गामल्ल ने माफी नहीं मांगी। उसके बाद ब्रिटिश फौजी अदालत ने उन्हें मृत्युदंड की सजा दी गई। 25 अगस्त 1944 को मेजर दुर्गामल्ल को फांसी पर चढ़ा दिया गया। उनकी याद में डोईवाला चौक का नाम दुर्गामल्ल चौक के नाम पर रखा गया है। साथ ही उत्तराखंड सरकार की ओर से उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया है
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मेरे बलिदान के बाद करोडो हिंदुस्तानी तुम्हारे साथ होंगे………
* अमर बलिदानी मेजर दुर्गामल्ल को पकड़ने के बाद अंग्रेजी सेनिक सभी तरह की यातनाये देने के बाद भी माफी नहीं मंगवा सके तो अंग्रेजों ने भावनात्मक रूप से उन्हें कमजोर करने के लिए उनकी नव विवाहित पत्नी व छोटी बहन को दिल्ली बुलाया। जिससे कि वह कमजोर होकर उन्हें देखकर अपनी गलती मान ले। और उनके आगे झुक जाए। परंतु वर्तमान में हिमाचल के धर्मशाला में रह रही करीब 97 वर्ष की हो चुकी उनकी छोटी बहन श्यामा देवी मल्ल व अपनी पत्नी शारदा देवी को उन्होंने अंतिम बार यह कहते हुए घर भेज दिया कि शारदा में अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए त्याग कर रहा हूं। तुम्हें चिंतित और दुखी नहीं होना चाहिए। मेरे बलिदान होने के बाद करोड़ हिंदुस्तानी तुम्हारे साथ होंगे। मेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। भारत आजाद होगा अब यह थोड़े समय की बात है। उनकी इस निर्भकता की बाते देशप्रेम व हंसी को देखकर अंग्रेज उन्हें लाल किले से दिल्ली सेंट्रल जेल ले गए और उसके ठीक दस दिन बाद 25 अगस्त 1944 को उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। उस वक्त बलिदानी दुर्गामल्ल की आयु 31 वर्ष की ही थी।
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पत्नी की विवाह की मेहंदी सूखने से पहले ही देश की आजादी के लिए बढ़ा दिए थे कदम
डोईवाला: बलिदानी दुर्गामल्ल का विवाह हिमाचल के धर्मशाला निवासी शारदा देवी ठाकुर से हुआ था। जब परिवार विवाह की खुशियां मना रहा था और झूम रहा था। तभी शादी के तीन दिन बाद ही आजाद हिंद फौज से बुलावा आ गया था। जिसको उन्होंने हंसते-हंसते स्वीकार किया और अपना गृहस्त जीवन जीने की बजाय देश की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उस वक्त जब वह घर से निकले तो उसके बाद फिर दोबारा घर ना लौट सके। आज भी उनकी छोटी बहन अपने भाई की उन यादों को उम्र के अंतिम पड़ाव में भी संजो कर बैठी हुई है। साथ ही इसको लेकर उन्होंने पिछले वर्ष अप्रैल 2023 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर यह सारी घटनाएं बताई। साथ ही देहरादून एयरपोर्ट का नाम भी बलिदानी दुर्गामल्ल के नाम पर रखने की मांग की थी। जिसको लेकर अभी प्रक्रिया विचाराधीन है।
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बलिदानी के लिए सुरेंद्र सिंह थापा हमेशा रहे मुखर
डोईवाला: बलिदानी दुर्गामल्ल को लेकर आरटीआई क्लब के संगठन सचिव एवं सार्थक फाउंडेशन के संस्थापक सुरेंद्र सिंह थापा हमेशा सजग रहे। उनके प्रयासों से ही डोईवाला चौक पर जहां बलिदानी दुर्गामल्ल की घोड़े पर सवार विशाल प्रतिमा लग पाई। तो वहीं डोईवाला चौक का नाम भी बलिदानी के नाम पर पड़ा। इसके साथ ही उन्होंने नैनीताल के भीमताल में भी बलिदानी के नाम पर पार्क व प्रतिमा का निर्माण करने में मुख्य भूमिका निभाई । इसके अलावा बस के टिकट में भी बलिदानी दुर्गामल्ल का नाम अंकित होने के अलावा और वह देहरादून एयरपोर्ट का नाम भी बलिदानी के नाम पर करने के लिए पत्राचार लगातार कर रहे है। जिससे की बलिदानी को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके।